दुर्गा पूजा पर निबन्ध | Durga Puja Essay in Hindi, 2023

Durga Puja Essay in Hindi : साल 2023 में दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर से शुरू होगी और 24 अक्टूबर को समाप्त होगी। जो अब कुछ ही दिन बचे हैं।

  • प्रथम दिन (षष्ठी) : 20 अक्टूबर, शुक्रवार
  • द्वितीय दिन (सप्तमी) : 21 अक्टूबर, शनिवार
  • तृतीय दिन (अष्टमी) : 22 अक्टूबर, रविवार
  • चतुर्थ दिन (नवमी) : 23 अक्टूबर, सोमवार
  • अंतिम दिन (विजयादशमी) : 24 अक्टूबर, मंगलवार।

दुर्गा पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसका पहला दिन षष्ठी तिथि को शुरू होता है, और इस दिन माँ दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की जाती है। दुर्गा पूजा के अंतिम दिन अर्थात दशमी को मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है। इस त्योहार में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। जिनको शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस पूजा को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

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दुर्गा पूजा का इतिहास

दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है। इसका उल्लेख हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। दुर्गापूजा का उद्देश्य देवी दुर्गा की पूजा करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना है।

दुर्गा पूजा मनाने के पीछे की कहानी

पहली कथा

एक बार एक शक्तिशाली राक्षस राजा महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया। देवताओं ने त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से मदद मांगी। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मिलकर अपनी शक्ति से देवी दुर्गा का सृजन किया, जिसे शक्ति और दया की देवी भी कहते हैं।

दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया और अंत में उसे पराजित कर दिया। महिषासुर के वध के उपलक्ष्य में ही हर साल खुशियां मनाने के लिए नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

दूसरी कथा

प्राचीन काल में, महिषासुर नामक एक दैत्य था जिसने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसे कोई भी पुरुष नहीं मार सकता। इस अहंकार में वह अत्याचारी हो गया, और अपने बल से स्वर्ग पर कब्जा कर सभी देवताओं को अपने अधीन कर लिया।

सभी असमर्थ देवताओं ने मिलकर महिषासुर को हराने के लिए देवी दुर्गा की रचना की। दुर्गा देवी शक्ति और दया की अवतार थी। उन्होंने महिषासुर के खिलाफ नौ दिनों तक लगातार युद्ध किया, और अंत में दसवें दिन उसे मार डाला।

महिषासुर की हार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। विजयादशमी के रूप में जाना जाने वाला यह त्योहार हर साल नवरात्रि के अंतिम दिन मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा की शुरुआत

दुर्गापूजा की शुरुआत कब हुई, इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह पर्व प्राचीन काल से मनाया जा रहा है, जबकि अन्य का मानना ​​है कि यह पर्व मध्यकाल में शुरू हुआ था। दुर्गापूजा का सबसे पहला उल्लेख 13वीं शताब्दी के बंगाली ग्रंथों में मिलता है।

दुर्गापूजा भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन यह बंगाल में सबसे अधिक लोकप्रिय है। बंगाल में, दुर्गापूजा एक सांस्कृतिक समारोह है, जिसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। बंगाल में, दुर्गापूजा के दौरान, लोग अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों पर देवी दुर्गा की मूर्तियां स्थापित करते हैं। इन मूर्तियों की पूजा नौ दिनों तक की जाती है।

दुर्गापूजा के दौरान, लोग कई तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। जिनमें पूजा, भजन, नृत्य और संगीत आदि शामिल हैं। दुर्गापूजा का समापन दशहरा के दिन होता है, जब देवी दुर्गा को विसर्जित किया जाता है।

दुर्गा पूजा के महत्त्व

दुर्गा पूजा के महत्व को हम चार भागों में बांट सकते हैं; धार्मिक या आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व।

दुर्गा पूजा के धार्मिक महत्त्व 

दुर्गा पूजा के निम्नलिखित धार्मिक महत्व है :

  • बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक : दुर्गा पूजा हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार, यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दुर्गा पूजा के दौरान, भक्तगण देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और उनसे अपने जीवन के दुखों से मुक्ति एवं सुख-शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • देवी दुर्गा की आराधना : दुर्गा पूजा देवी दुर्गा की आराधना का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दौरान, भक्त देवी दुर्गा की मूर्ति या प्रतिमा की स्थापना करते हैं और उन्हें फूल, प्रसाद, और अन्य भेंट चढ़ाते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा करने से भक्तों को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।

देवी दुर्गा के नौ रूप

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दुर्गा के नौ रूप

हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा को राक्षस राजा महिषासुर के साथ नौ दिनों की लड़ाई में नौ रूप धारण करना पड़ा था, और दसवें दिन ही महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये नौ रूप निम्नलिखत हैं :-

1. शैलपुत्री

2. ब्रह्मचारिणी

3. चंद्रघंटा

4. कुष्मांडा

5. स्कंदमाता

6. कात्यायनी

7. कालरात्रि

8. महागौरी

9. सिद्धिदात्री

दुर्गा पूजा के सांस्कृतिक महत्व

दुर्गा पूजा भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। यह त्योहार सामान्यतया साल अक्टूबर के महीने में आता है, और इसमें छह दिनों तक चलने वाली विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों का समावेश होता है।

दुर्गा पूजा के सांस्कृतिक महत्व निम्नलिखित है :

  • दुर्गा पूजा भारतीय कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस त्योहार के दौरान, देवी दुर्गा की सुंदर मूर्तियों और पंडाल का निर्माण किया जाता है। ये मूर्तियां और पंडाल भारतीय कला और संस्कृति की विविधता और समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं। जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करता है।
  • इस त्योहार के दौरान, विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि संगीत, नृत्य, और नाटक। ये कार्यक्रम लोगों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराते हैं।
  • दुर्गा पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है। पश्चिम बंगाल में, दुर्गापूजा को सबसे भव्य तरीके से मनाया जाता है। कोलकाता में, दुर्गापूजा एक प्रमुख सांस्कृतिक आयोजन है और दुनिया भर से लोग इसे देखने आते हैं। यह एक ऐसा त्योहार है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखता है।

Durga Puja Essay in Hindi

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दुर्गा पूजा के सामाजिक महत्व 

दुर्गा पूजा भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, और अन्य देशों में हिन्दू समुदायों द्वारा मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा के सामाजिक पहलू निम्नलिखित हैं :

  • सामाजिक एकता और सद्भाव : दुर्गा पूजा एक ऐसा अवसर है जब सभी जातियों के लोग एक साथ आकर देवी दुर्गा की पूजा करते हैं। इसलिए इस त्योहार से आपसी सहयोग, भाईचारे, सामाजिक एकता और सद्भाव को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक समरसता : इस त्यौहार में लोग सामूहिक रूप से देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर त्योहार मनाते हैं। जिससे सामाजिक समरसता और सामाजिक सहयोग की भावना बढती है।
  • सामाजिक उत्सव : दुर्गापूजा एक ऐसा त्योहार है जो सामाजिक उत्सव का माहौल बनाता है। इस दौरान, सभी लोग मिलकर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक साथ आनंद लेते हैं। इससे लोगों में खुशी और उत्साह का संचार होता है।

दुर्गा पूजा एक महत्वपूर्ण सामाजिक त्योहार है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक मूल्यों को संरक्षित करता है।

दुर्गा पूजा के आर्थिक महत्व 

दुर्गा पूजा एक सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार तो है ही, इसका आर्थिक महत्व भी बहुत है। दुर्गापूजा के दौरान, लोग नए कपड़े खरीदते हैं, घरों को सजाते हैं, प्रसाद और भोजन तैयार करते हैं। इस दौरान, लोगों द्वारा काफी खर्च किये जाते है, जो अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।

दुर्गा पूजा के आर्थिक महत्व निम्नलिखित हैं :

आर्थिक आयोजन

दुर्गा पूजा एक बड़ा आर्थिक आयोजन है। इस त्योहार के दौरान, विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के आय में वृद्धि होती है, जैसे कि पर्यटन, व्यापार, और सेवा उद्योग।

यात्रा में वृद्धि

दुर्गापूजा के दौरान, कई लोग यात्रा करते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। यह त्योहार भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले त्योहारों में से एक है।

वस्तुओं के खरीद में वृद्धि

यह त्योहार लोगों को नए कपड़े, आभूषण, और इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदने के लिए प्रेरित करता है। यह त्योहार होटल उद्योग और पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देता है।

अर्थव्यवस्था में योगदान

एक अनुमान के अनुसार, दुर्गापूजा भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 10,000 करोड़ रुपये का योगदान देती है। यह त्योहार देश के कई लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत भी है।

उत्पादों के मांग में वृद्धि

दुर्गापूजा के दौरान, कई प्रकार के उत्पादों की मांग बढ़ जाती है, जैसे कि कपड़े, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, और भोजन। इससे उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि होती है।

रोजगार का सृजन

दुर्गापूजा के दौरान, कई लोगों को रोजगार मिलता है, जैसे कि पूजा पंडालों में काम करने वाले, दुकानदार, और पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग।

राजस्व की प्राप्ति

दुर्गापूजा के दौरान कई प्रकार के व्यवसायों में वृद्धि होती है, जैसे;

  • कपड़ा उद्योग
  • आभूषण उद्योग
  • इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
  • होटल उद्योग
  • पर्यटन उद्योग इत्यादि।

इस दौरान, सरकार को कर राजस्व में वृद्धि होती है, जैसे कि उत्पाद शुल्क, बिक्री कर और यात्रा कर।

दुर्गा पूजा और उसके मिथक 

दुर्गा पूजा के पीछे कई मिथक और मान्यताएं हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

नारी शक्ति की अनदेखी

दुर्गा पूजा को अक्सर नारी शक्ति का उत्सव माना जाता है, लेकिन इस त्योहार में नारी शक्ति को अक्सर डर और धर्मभीरुता के रूप में चित्रित किया जाता है। दुर्गा को अक्सर एक क्रूर और हिंसक देवी के रूप में दिखाया जाता है, जो महिषासुर जैसे दुष्ट राक्षसों का वध करती है। इस तरह के चित्रण से यह धारणा बनती है कि नारी शक्ति केवल तब ही उपयोगी होती है जब वह पुरुषों के खिलाफ लड़ रही हो।

नाखून और बाल न काटें

दुर्गा पूजा के दौरान, कई लोग नाखून और बाल नहीं काटते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हालांकि, इस मान्यता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

कपड़े न सिलें

दुर्गा पूजा के दौरान कई लोग कपड़े नहीं सिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से देवी दुर्गा नाराज हो सकती हैं। इस मान्यता का भी कोई तर्क-संगत नहीं है।

सोच समझ कर कार्य करें

दुर्गा पूजा के पहले दिन, परिवा यानी नवरात्र का पहला दिन मनाया जाता है। इस दिन, कई लोग सोच समझकर कार्य करने की सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए कार्यों का पूरे वर्ष भर प्रभाव पड़ता है। जबकि इस मान्यता का कोई ठोस आधार नहीं है।

इन मिथकों और मान्यताओं को अक्सर शास्त्रों या परंपराओं का हवाला देकर समर्थित किया जाता है। जबकि कई लोग इन मिथकों को आधुनिक समय के लिए अप्रचलित और हानिकारक मानते हैं।

दुर्गा पूजा और अन्धविश्वास 

दुर्गापूजा के साथ कई अंधविश्वास भी जुड़े हुए हैं, जो इस प्रकार हैं :

मूर्ति पूजा

मूर्ति पूजा हिन्दू धर्म की एक आम प्रथा है। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मूर्तियां केवल एक प्रतीक हैं। वे देवी दुर्गा के वास्तविक अवतार नहीं हैं। मूर्ति पूजा का उद्देश्य लोगों को देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने में मदद करना है। कुछ लोग मानते हैं कि दुर्गा पूजा के दौरान बनाई गई मूर्तियां वास्तव में देवी दुर्गा का अवतार होती हैं। वे मूर्तियों को देवी के रूप में मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। हालांकि, इस विश्वास का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

पशु बलि

कुछ स्थानों पर दुर्गापूजा के दौरान पशु बलि दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं। जबकि पशु बलि एक अमानवीय प्रथा है। जिसका कोई तार्किक आधार नहीं है। दुर्गा पूजा के दौरान पशु बलि देने का कोई धार्मिक कारण भी नहीं है। यह केवल एक अंधविश्वास है।

टोटके और उपाय

कुछ लोग दुर्गापूजा के दौरान विभिन्न टोटकों और उपायों का पालन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये टोटके और उपाय उन्हें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने में मदद करेंगे। हालांकि, इन टोटकों और उपायों के पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। टोटके और उपाय अंधविश्वासों के आधार पर किए जाते हैं। टोटके और उपाय करने से कोई लाभ नहीं होता है।

दुर्गापूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल कुछ अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इन अंधविश्वासों को चुनौती देना और उन्हें दूर करना महत्वपूर्ण है।

नारी शक्ति पूजा और वास्तविकता

दुर्गा पूजा नारी शक्ति की पूजा है, लेकिन इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि भारत में आज भी महिलाओं के साथ कई तरह के भेदभाव और हिंसा की घटनाएँ होती रहती है। इनमें दहेज हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा, शिक्षा और रोजगार में असमानताएं और सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न आदि शामिल हैं।

हालांकि, दुर्गा पूजा नारी शक्ति के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। इस त्योहार के दौरान, महिलाएं अक्सर प्रमुख भूमिका निभाती हैं, जैसे कि देवी दुर्गा की पूजा करना, गरबा नृत्य करना, और सामाजिक कार्य में भाग लेना। दुर्गा पूजा महिलाओं को अपनी शक्ति और क्षमताओं को पहचानने, आत्मविश्वास को बढाने और उनका जश्न मनाने का एक अवसर प्रदान करती है।

दुर्गा पूजा के माध्यम से हम नारी शक्ति के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत संदेश दे सकते हैं। हम यह दिखा सकते हैं कि महिलाएं शक्तिशाली और सक्षम हैं, और वो समान अवसर और सम्मान के हकदार हैं।

निष्कर्ष : Durga Puja Essay in Hindi

अंत में हम कह सकते हैं कि दुर्गा पूजा हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, और इस त्योहार के दौरान हम देवी दुर्गा की पूजा करते है, क्योंकि दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह पूजा भारत के विभिन्न क्षेत्रो में विभिन्न तरीकों से मनाई जाती है।

दुर्गा पूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है, लेकिन यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि इससे जुड़े कई अंधविश्वास भी हैं, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इन अंधविश्वासों को चुनौती देना और इन्हें दूर करना अति आवश्यक है। हम दुर्गा के रूप में नारी की पूजा तो करते हैं लेकिन वास्तविक नारी का हम सम्मान नही करते, उनके साथ तमाम तरह के भेद-भाव किये जाते हैं।

इस उत्सव के माध्यम से हम महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण का एक मजबूत संदेश दे सकते हैं। हम इसे प्रदर्शित कर सकते हैं, महिलाएँ शक्तिशाली और सक्षम हैं, इसलिए उन्हें समान अवसर और मानवोचित सम्मान भी मिलना चाहिए। 

FAQs : Durga Puja Essay in Hindi

Q 1. दुर्गा पूजा कब है? (Durga Puja Kab Hai?)

साल 2023 में दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर से शुरू होगी और 24 अक्टूबर को समाप्त होगी।
प्रथम दिन (षष्ठी) : 20 अक्टूबर, शुक्रवार
द्वितीय दिन (सप्तमी) : 21 अक्टूबर, शनिवार
तृतीय दिन (अष्टमी) : 22 अक्टूबर, रविवार
चतुर्थ दिन (नवमी) : 23 अक्टूबर, सोमवार
अंतिम दिन (विजयादशमी) : 24 अक्टूबर, मंगलवार।

Q 2. दुर्गा पूजा कितने तारीख को है? Durga Puja Kitne Tarikh Ko Hai?

दुर्गा पूजा 2023 की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार से होगी और 24 अक्टूबर मंगलवार तक मनाई जाएगी। इसलिए दुर्गा पूजा का पहला पूजा 15 अक्टूबर को होगा। यानी दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ शुरू होगी और 24 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के साथ इसकी समाप्ति होगी।

Q 3. दुर्गा पूजा के कितने दिन बचे हैं? How Many Days Left For Durga Puja?

आज 14 अक्टूबर 2023 है। दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर से शुरू होगी। इसलिए दुर्गा पूजा के 1 दिन बचे हैं। यदि हम कलश स्थापना के दिन से गिनती शुरू करते हैं, तो दुर्गा पूजा के 6 दिन बचे हैं। यदि हम कहें कि दुर्गा पूजा के अंतिम दिन तक कितने दिन बचे हैं, तो उत्तर होगा, 10 दिन। दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर से शुरू होकर 24 अक्टूबर को समाप्त होगी। इसलिए, दुर्गा पूजा के अंतिम दिन तक 10 दिन बचे हैं।

Q 4. दुर्गा पूजा 2023 (Durga Puja 2023)।

दुर्गा पूजा 2023 एक पांच दिवसीय हिन्दू त्योहार है। जो 20 अक्टूबर 2023 से शुरू होगी और 24 अक्टूबर 2023 को समाप्त हो जाएगी। यह पूजा देवी दुर्गा को समर्पित है, जो शक्ति और अच्छाई की देवी है। दुर्गा पूजा को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन कुछ सामान्य प्रथाओं में देवी दुर्गा की मूर्ति की स्थापना, भजन और मंत्रों का पाठ, और भव्य जुलूस आदि शामिल है।