सूरदास का जीवन परिचय | Surdas Ka Jivan Parichay

अगर आप Surdas Ka Jivan Parichay पढ़ना चाहते हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए है। हम आपको सूरदास के बारे में वो सभी जानकारी देंगे जो आप जानना चाहते हैं। सूरदास भक्ति आंदोलन के महानतम कवियों में से एक थे, जिन्होंने एक धार्मिक आंदोलन के द्वारा भगवान के प्रति व्यक्तिगत भक्ति पर जोर दिया था।

सूरदास महान कवि होने के साथ-साथ गायक भी थे, और भगवान श्री कृष्ण के एक अंधे भक्त थे। सूरदास ने भगवान श्री कृष्ण के बारे में ढेर सारी रचनाएं लिखी जिनके कारण आज हम सूरदास को एक महान कवि के रूप में जानते हैं। सूरदास अपनी अधिकतर कविताएं ब्रजभाषा में ही लिखते थे इसके अलावा सूरदास अन्य भाषाओं जैसे; अवधि आदि में भी अपनी कविताएं लिखते थे।

दोस्तों वैसे तो सूरदास जी अपनी काफी महान-महान कविताओं के कारण जाने जाते थे लेकिन इसके साथ-साथ सूरदास जी अंधे होने के कारण काफी ज्यादा प्रचलित थे, सूरदास जी संत वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे, सूरदास जी ने अपना अंतिम जीवन वृंदावन के अंदर भगवान श्री कृष्ण की कविताओं को गाते हुए लिखते हुए बिताया था।

Surdas Ka Jivan Parichay

नामसूरदास
जन्म1478
जन्म का स्थानदिल्ली के सिही गांव
पितारामदास
माताजमुनादास
पत्नीलीला
दादाहरिश्चंद्र
शिक्षासूरदास जी अंधे होने के बावजूद भी वेदों और अन्य हिंदू ग्रंथो की शिक्षा ग्रहण की थी
मृत्यु1583 ईस्वी

सूरदास का जन्म और परिवार

सूरदास जी का जन्म सन 1448 ईस्वी में दिल्ली के पास एक छोटे से सिही गांव में हुआ था, सूरदास जी एक गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे और उनकी परवरिश भी एक मध्यम वर्गीय परिवार की तरह हुई थी। सूरदास जी के पिता का नाम रामदास था और माता का नाम जमुना था, सूरदास जी अपने जन्म के समय ही अंधे पैदा हुए थे।

सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन श्री कृष्ण के बचपन से जुड़े पवित्र स्थान जैसे वृंदावन के अंदर बिताया और उन्होंने अपने जीवन में श्री कृष्णा पर काफी ज्यादा अध्ययन और काफी ज्यादा काव्य लिखे, जो की लोगों को काफी ज्यादा पसंद आये।

सूरदास की शिक्षा

सूरदास जी को स्कूली शिक्षा का ज्ञान  नहीं था क्योंकि सूरदास जी अंधे पैदा होने के कारण कभी भी स्कूल नहीं जा पाए इस कारण से सूरदास जी को औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं हुई। लेकिन सूरदास जी काफी बुद्धिमान व्यक्ति थे इस कारण से उन्होंने अपने गुरु वल्लभाचार्य जी से वेदों और हिंदू धर्म ग्रंथो के बारे में शिक्षा प्राप्त की।

सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य थे जो की एक वैष्णव संत के रूप में जाने जाते थे, सूरदास जी के गुरु ने उन्हें श्री कृष्णा भक्ति के बारे में काफी कुछ सिखाया और उनकी काव्य रुचि को काफी ज्यादा विकसित किया, इसी कारण से सूरदास जी ने आज हमें काफी महान-महान काव्य प्रदान कीकिए हैं।

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सूरदास का आरंभिक जीवन

सूरदास जी जन्म के समय से ही अंधे थेऔर सूरदास जी एक गरीब ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे तो उनका प्रारंभिक जीवन गरीबी व कठिनाइयों से गुजरा लेकिन सूरदास जी काफी बुद्धिमान थे इस कारण से उन्होंने बचपन में ही काफी सारी कलाएं सीख ली थी जैसे कि वे बचपन में संगीत व कविता में काफी ज्यादा आगे बढ़ चुके थे।

सूरदास जी ने बचपन में ही एकतारा बजाना सीख लिया था और भगवान श्री कृष्ण की कविताएं लिखना भी शुरू कर दिया, सूरदास जी ने 12 साल की उम्र में ही अपने घर को छोड़ दिया था और कृष्ण जन्म भूमि वृंदावन में चले गए थे जहां पर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के बारे में काफी कविताएं लिखी।

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सूरदास का वैवाहिक जीवन

दोस्तों सूरदास जी का वैवाहिक जीवन यानी की कुछ विद्वानों की माने तो सूरदास जी का विवाह हुआ था लेकिन अगर वहीं पर कुछ विद्वानों की माने तो सूरदास जी का विवाह नहीं हुआ था, किसी भी व्यक्ति को सूरदास जी के विवाहित जीवन के बारे में संपूर्ण ज्ञान नहीं है कुछ विद्वान उनके द्वारा लिखी गई कविताओं में से कुछ पंक्तियां उठाकर उनकी पत्नी के बारे में व्याख्या की है।

सूरदास जी की कविताओं में एक लीला नाम की महिला का जीकर किया गया जिसे की उन्होंने अपने जीवन की रोशनी बताया है, तो इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि सूरदास जी का विवाह हो चुका था और उनकी पत्नी का नाम लीला था, लेकिन यह संपूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है हो सकता है सूरदास जी के यह शब्द भगवान श्री कृष्ण के बारे में भी हो सकते हैं।

सूरदास की रचनाएँ

सूरदास जी के द्वारा काफी सारी कविताओं की रचना की गई थी माना जाता है कि सूरदास जी के द्वारा 10 लाख से अधिक कविताओं की रचना की गई थी लेकिन आज के समय में कुछ हजार कविता ही बची है जो कि इस प्रकार है-

सूरसागर –

सूरसागर काव्य के अंदर भगवान श्री कृष्ण के बारे में व्याख्या की गई है, सूरसागर के अंदर भगवान श्री कृष्ण के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक के जीवन की संपूर्ण व्याख्या की गई है, सूरसागर काव्य को ब्रजभाषा के अंदर लिखा गया है, सूरसागर को हिंदी साहित्य की प्रमुख कृतियों में से एक का दर्जा दिया गया है।

सुर सारावली –

सुर सारावली काव्य के अंदर सूरदास जी ने राधा व श्री कृष्ण के प्रेम के बारे में व्याख्या की है, व श्री कृष्ण का राधा के प्रति जो प्रेम था उसके बारे में सुर सारावली के अंदर कविताओं का काफी बड़ा संग्रह है।

नल-दमयंती –

नल-दमयंती एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य का पुनरकथन किया गया है।

सूरदास की कुछ महान पंक्तियां

तो चलिए दोस्तों सूरदास जी के द्वारा लिखी गई कुछ महान पंक्तियों पर नजर डाल लेते हैं कि उनके द्वारा किन-किन महान पंक्तियों की रचना की गई –

  1. “जो प्रेम करे सो प्रेम पावे, प्रेम बिना कोई नहीं।”
  2. “मैं तो प्रेम दीवानी, मुझे और कुछ ना आवे है।”
  3. “तेरा ही नाम, तेरा ही ध्यान, तेरा ही मिलन चाहिए।”
  4. “मेरा दिल है कृष्णा मैया का, और कुछ नहीं जाने।”
  5. “मेरा तन मन धन, सब कृष्ण को अर्पण है।”
  6. “राधा के प्रेम में, मैं तो घर भी भूल गया।”

इन पंक्तियों के द्वारा हमें सूरदास जी का भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की भावना नजर आती है, इससे पता लगता है कि सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के कितने बड़े भक्त थे।

सूरदास की मृत्यु

सूरदास जी की मृत्यु 1583 ईस्वी में हुई थी, मृत्यु के समय सूरदास जी की आयु 105 वर्ष की थी, मृत्यु होने के पश्चात सूरदास जी के शरीर को जलने की वजह दफनाया गया और उनके देह को वृंदावन के निकट ही एक पवित्र स्थान  गोवर्धन में दफनाया गया।

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निष्कर्ष

सूरदास जी के जीवन से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है, सूरदास जी के जीवन के बारे में देखा जाए तो वह अंधे होने के बावजूद भीअपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी और एक बहुत बड़े काव्याकर बने। तो इसी प्रकार से जीवन में कितनी भी कठिनाई आ जाए हमें हर एक कठिनाई का डट कर सामना करना चाहिए, अगर आपको सूरदास का जीवन परिचय आर्टिकल में दी हुई जानकारी पसंद आई हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें ताकि सूरदास जी के जीवन के बारे में उनको भी काफी कुछ जानकारी मिले।

FAQs : Surdas Ka Jivan Parichay

Q 1. सूरदास कैसे अंधे हुए थे?

सूरदास अपने जन्म के समय ही अंधे पैदा हुए थे।

Q 2. सूरदास की भाषा शैली क्या है?

सूरदास की भाषा शैली ब्रजभाषा है।

Q 3. क्या सूरदास ने कृष्ण को देखा था?

कई मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण ने अपने परम भक्त सूरदास को दर्शन दिया था। एक बार सूरदास जी श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे कहीं जा रहे थे तभी रास्ते में वे एक कुंआ पड़ा. दिखाई ना देने की वजह से सूरदास कुएं में जा गिरे. भक्त को मुश्किल में देखकर भगवान कृष्ण ने खुद प्रकट होकर उनकी जान बचाई।