महात्मा गांधी की जीवनी | महात्मा गांधी का जीवन परिचय | पूना-पैक्ट | सविनय अवज्ञा आंदोलन | करो या मरो | Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay | Mahatma Gandhi Biography in Hindi | बचपन | शिक्षा दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष | भारत में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान | हत्या | गांधी जी के विचार | आदर्श
महात्मा गांधी का संक्षिप्त परिचय
2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी को आज दुनिया भर में महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है। वे भारत के राष्ट्रपिता और आधुनिक भारत के निर्माता हैं। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने में निर्णायक भूमिका निभाई। उनके विचार और आदर्श आज भी दुनिया भर में प्रेरणा के स्रोत है।
गांधी जी का बचपन गुजरात के पोरबंदर और राजकोट में बीता। उनके पिता करमचंद गांधी कठियावाड़ के एक छोटे से राज्य के दीवान थे। गांधी जी के माता-पिता धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थी और वे अपने बच्चों को भी धार्मिक शिक्षा देती थी। गांधी के पिता करमचंद गांधी भी धार्मिक थे और वे अपने बच्चों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते थे।
गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में प्राप्त की। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड से विधि की पढ़ाई करने के बाद वे दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहां वे भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। इस दौरान उन्होंने अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर सफलता प्राप्त की।
दक्षिण अफ्रीका से लौटकर गांधी जी ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने चंपारण, खेड़ा, खिलाफत, नमक और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया। इन आंदोलनों के माध्यम से गांधी जी ने अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने का संकल्प लिया।
गांधी जी के नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी जी ने भारत की एकता और अखंडता के लिए काम किया। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयास किए।
30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी। गांधी जी की हत्या ने भारत और दुनिया भर में लोगों को स्तब्ध कर दिया। उनकी हत्या के बाद भारत ने उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया।
गांधी जी के जीवन और विचारों ने दुनिया भर में लोगों को प्रेरित किया है। वे सत्य, अहिंसा, प्रेम और शांति के पुजारी थे। उनके विचार आज भी दुनिया भर में लोगों को एकता, भाईचारे और समानता के लिए प्रेरित करते हैं।
जन्म और परिवार
मोहनदास का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को वर्तमान गुजरात के पोरबंदर जिले के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करमचन्द गाँधी था।
महात्मा गांधी, अपने पिता करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी पुतलीबाई की चार संतानों में सबसे छोटी संतान थे। करमचंद गांधी की पहली पत्नी से एक बेटी मूली बेन, दूसरी पत्नी से पानकुंवर बेन, तीसरी पत्नी से कोई संतान नहीं हुई और चौथी पत्नी पुतलीबाई से चार बच्चे हुए, सबसे बड़े लक्ष्मीदास, फिर रलियत बेन, कृष्णदास और सबसे छोटे मोहनदास।
मोहनदास की माँ पुतलीबाई एक धार्मिक और आध्यात्मिक महिला थीं। उन्होंने अपने बच्चों को एक सभ्य और धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया।
उनके पिता करमचंद गाँधी पोरबंदर रियासत के दो राजाओं के दीवान थे। वे सबसे पहले 1858 से 1875 तक राजा सयाजी राव तृतीय एवं इसके बाद 1875 से 1881 तक राजा विजय राव तृतीय के दीवान रहे।
दीवान के अधिकार एवं कर्तव्य बड़े ही महत्वपूर्ण होते थे। उनका काम पोरबंदर के शाही परिवार को प्रशासनिक सलाह देना और अन्य सरकारी अधिकारियों के नियुक्त के लिए अनुसंशा करना था। रियासत में उनकी हैसियत आज के मुख्यमंत्रियों जैसी थी।
महात्मा गांधी : एक नजर में
उपनाम | महात्मा गाँधी |
वास्तविक नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
जन्म तिथि | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म का स्थान | गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में जन्म हुआ |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
पत्नी का नाम | कस्तूरबा गांधी |
पुत्र का नाम | हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास |
प्रारंभिक शिक्षा | पोरबंदर, गुजरात |
उच्च शिक्षा | बैरिस्टर |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948 |
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महात्मा गांधी की शिक्षा
महात्मा गाँधी की प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के पोरबंदर शहर में हुई। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गुजराती और संस्कृत में पोरबंदर के राजकुमारी स्कूल से प्राप्त की।
इसके बाद, 9 साल की उम्र में राजकोट चले गये और अल्फ्रेड हाई स्कूल में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और इतिहास जैसे विषयों का अध्ययन किया।
मैट्रिक के बाद उन्होंने भावनगर के सामलदास आर्ट्स कॉलेज से पढ़ाई की, जो उस समय के सबसे अच्छे स्कूलों में से एक था। फिर अध्ययन के बाद वो वापस पोरबंदर चले गए।
कहा जता है कि उनकी अंग्रेजी अच्छी थी पर भूगोल में वे कमजोर थे और साथ ही उनकी हैंड राइटिंग भी अच्छी नही थी। उन्हें उनका परिवार बैरिस्टर बनाना चाहता था, लेकिन हिन्दू रूढ़िवादी विचारधारा के कारण विदेश भेजने के लिए तैयार भी नहीं थे। उसके बावजूद वो इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन फैकल्टी ऑफ लॉ में पढ़ाई की।
गाँधी जी के वैवाहिक जीवन
महात्मा गांधी की शादी 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से कर दी गई थी, जो उनकी उम्र से एक साल बड़ी थीं। उस समय, भारत में बाल विवाह आम बात थी। यह शादी उनके पिता द्वारा तय की गई थी। गांधी जी की शादी के बाद, इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई करने के लिए घर छोड़ दिया।
गाँधीजी ने प्रारंभ में विवाह को एक सामाजिक बाध्यता के रूप में देखा था। इंग्लैंड में, गांधीजी ने अपने विचारों में बदलाव करना शुरू कर दिया। उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के बारे में सीखा। उन्होंने यह भी सीखा कि विवाह एक व्यक्तिगत निर्णय है, और यह माता-पिता या समाज द्वारा तय नहीं किया जाना चाहिए।
गांधीजी भारत लौटने के बाद, उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ मिलकर एक नई तरह का वैवाहिक जीवन जीया। गांधीजी और कस्तूरबा के चार बच्चे हुए। उन्होंने एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार किया। वे एक-दूसरे को अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी और एक-दूसरे को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद की।
वे एक साथ कई आंदोलनों में शामिल हुए, जिनमें भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई भी शामिल थी। कस्तूरबा ने अपने पति के राजनीतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गाँधीजी ने अपने वैवाहिक जीवन से कई महत्वपूर्ण सबक सीखे। उन्होंने सीखा कि विवाह एक व्यक्तिगत संबंध है, जिसे प्यार, सम्मान और समझ के साथ बनाना चाहिए। उन्होंने यह भी सीखा कि विवाह एक आध्यात्मिक अनुभव हो सकता है, जो दो लोगों को एक साथ ला सकता है।
गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी का 22 फरवरी, 1944 को पुणे के आगा खान पैलेस में 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
गांधी जी के वैवाहिक जीवन ने उन्हें एक बेहतर व्यक्ति और नेता बनाया। उन्होंने अपने जीवन से एक ऐसे विवाह का उदाहरण पेश किया जो प्यार, सम्मान और समानता पर आधारित था।
लापरवाह और संवेदनहीन गांधी
बचपन में मोहनदास परिवार के बागी नौजवान थे। वे चोरी करने, शराब पीने और मांस खाने जैसे, कई दुर्गुणों के शिकार हो गये थे। जब गांधी के पिता मरणासन्न स्थिति में थे, तब वे उन्हें छोड़कर अपनी पत्नी से मिलने उसके मायके चले गये थे।
उनके जाने के बाद उनकी अनुपस्थिति में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी। अपने पिता की मृत्यु के समय उनके पास न होने पर गांधी ने कहा था, “मैं बहुत शर्मिंदा था और ख़ुद को अभागा मानता था। मैं अपने पिता के कमरे की तरफ़ भागा। जब मैंने उन्हें देखा तो ये सोचा कि अगर वासना मुझ पर हावी नहीं हुई होती, तो मेरे पिता ने मेरी बांहों में दम तोड़ा होता।”
हालाकि इस घटना के बाद गांधी को बहुत पछतावा हुआ। वो अपने अन्दर सुधार लाने की कोशिश करने लगे। और, हर उस काम के लिए प्रायश्चित करते थे जो उनकी नजर में पाप होता था। इन सारी घटनाओं की चर्चा उन्होंने अपनी किताब ‘सत्य के प्रयोग’ में विस्तार से किया है।
महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम
पुस्तक का नाम | कब लिखी गई |
---|---|
हिंद स्वराज | 1909 |
नैतिक शिक्षा | 1909 |
नवजीवन (पत्रिका) | 1919 |
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह | 1924 |
मेरे सपनों का भारत | 1942 |
आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी | 1927 |
गीता बोध | 1929 |
हरिजन (पत्रिका) | 1933-1947 |
सामाजिक परिवर्तन के लिए धर्म | 1936 |
स्वराज्य की ओर | 1937 |
अहिंसा के साधन | 1920 |
व्यक्तिगत सत्याग्रह | 1920 |
स्वराज्य के लिए सत्याग्रह | 1922 |
गांधीवाद | 1932 |
यंग इंडिया (पत्रिका) | 1919-1942 |
अंतिम संदेश | 1948 |
गांधी का भारतीय राजनीति में आगमन
महात्मा गाँधी 9 जनवरी 1915 को भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के लिए दक्षिण अफ्रिका से भारत लौटे। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में किया गया पहला आन्दोलन बिहार का चंपारण सत्याग्रह था, जो पूरी तरह सफल रहा।
महात्मा गांधी द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलन
गाँधी जी द्वारा किया गया प्रमुख आन्दोलन निम्नलिखित है :-
चंपारण सत्याग्रह (1917)
चंपारण सत्याग्रह बिहार राज्य के चंपारण जिले में 1917 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में किया गया एक किसान आंदोलन था। यह गांधीजी के नेतृत्व में किया गया पहला सत्याग्रह था। इस आंदोलन का उद्देश्य चंपारण के किसानों को ब्रिटिश अधिकारियों और ज़मींदारों द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्त कराना था।
चंपारण के किसान ब्रिटिश अधिकारियों और ज़मींदारों द्वारा मजबूर किए जाते थे कि वे अपनी प्रत्येक 20 कट्ठे (एक बिगहा) भूमि में से 3 कट्ठे में नील की खेती करें। इस प्रणाली को तिनकठिया प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।
नील की खेती एक लाभदायक व्यवसाय था, लेकिन किसानों को इसके लिए बहुत कम भुगतान मिलता था। इसके अलावा, नील की खेती के कारण भूमि बंजर हो रही थी और किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी।
अप्रैल 1917 में, गणेश शंकर विद्यार्थी के कहने पर राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गाँधी को चम्पारण के नील कृषकों की स्थिति को जानने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने चंपारण का दौरा किया और किसानों के साथ बातचीत की।
किसानों ने गांधीजी को बताया कि वे तिनकठिया प्रणाली से बहुत परेशान हैं। गांधीजी ने किसानों को ब्रिटिश अधिकारियों और ज़मींदारों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
गांधीजी के नेतृत्व में, किसानों ने तिनकठिया प्रणाली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों और ज़मींदारों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाया। आंदोलन के दौरान, गांधीजी और उनके साथी कार्यकर्ताओं को कई बार गिरफ्तार भी किया गया।
अंततः ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांगों को मान लिया और 1917 में तिनकठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। चंपारण सत्याग्रह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। इस आंदोलन ने यह भी दिखाया कि सत्याग्रह का प्रयोग राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए किया जा सकता है।
असहयोग आंदोलन (1920)
असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। यह आंदोलन 1920 से 1922 तक चला। असहयोग आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के प्रतिरोध को संगठित करना और स्वराज प्राप्त करना था।
असहयोग आंदोलन के कारण
असहयोग आंदोलन के कई कारण थे, इनमें सबसे महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे :-
- खिलाफत आंदोलन – 1919 में तुर्की के खलीफा को सत्ता से हटा दिया गया था। इस घटना से मुस्लिम समुदाय में रोष फैल गया था। गांधीजी ने इस रोष का लाभ उठाकर खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन से जोड़ दिया।
- पंजाब में ब्रिटिश अत्याचार – 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सेना ने हजारों भारतीयों को मार डाला था। इस घटना ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश पैदा किया।
- स्वराज्य की मांग – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वराज्य की मांग को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया था। असहयोग आंदोलन को स्वराज्य प्राप्त करने के लिए एक साधन के रूप में देखा गया था।
असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम
असहयोग आंदोलन के तहत निम्नलिखित कार्यक्रम चलाए गए थे –
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार – भारतीयों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने का आह्वान किया गया।
- सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार – भारतीयों से सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करने और स्वदेशी स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश लेने का आह्वान किया गया।
- सरकारी उपाधियों और पदों से इस्तीफा – भारतीयों से सरकारी उपाधियों और पदों से इस्तीफा देने का आह्वान किया गया।
- सरकारी अदालतों का बहिष्कार – भारतीयों से सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया।
- करों का भुगतान न करना – इस आन्दोलनन के माध्यम से भारतीयों से करों का भुगतान न करने का आह्वान किया गया।
असहयोग आंदोलन का परिणाम
असहयोग आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक नई चेतना पैदा की। इस आंदोलन में लाखों लोगों ने भाग लिया तथा इसने भारतीयों को राजनीतिक रूप से संगठित कर उन्हें आजादी के लिए संघर्ष करने को प्रोत्साहित किया।
वर्ष 1921-22 के असहयोग आंदोलन का मुख्य परिणाम हिन्दू-मुस्लिम एकता थी।
असहयोग आंदोलन के दौरान मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, श्री राजगोपालाचारी, सरदार वल्लभभाई पटेल, आसिफ अली, चितरंजन दास एवं राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रमुख वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी थी।
हालांकि, असहयोग आंदोलन को 1922 में चौरी-चौरा कांड (गोरखपुर) के बाद गांधीजी ने वापस ले लिया। इस घटना में एक भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया और कई पुलिसकर्मियों को मार डाला। गांधी ने इस घटना को अहिंसक सत्याग्रह के सिद्धांतों के खिलाफ माना और आंदोलन को वापस ले लिया।
नोट :- चौरी-चौरा कांड (1922) – चौरी-चौरा उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास एक कस्बा था, जिसमें 5 फरवरी 1922 को एक अनियंत्रित भीड़ ने ब्रिटिश सरकार की पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिसमें 22 पुलिसकर्मी जल कर मर गए थे। इसी घटना को चौरी-चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1930)
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी द्वारा वर्ष 1930 में की गई थी। इसके तहत गांधीजी ने (नमक कानून तोड़ने के लिए) अपने 78 चुने हुए अनुयायियों के साथ ऐतिहासिक दांडी यात्रा (Dandi March) 12 मार्च, 1930 को (साबरमती आश्रम से) शुरू की थी। 6 अप्रैल, 1930 को गांधीजी अपने अनुयायियों के साथ दांडी पहुंचे, जहां उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। 5 मार्च, 1931 को गांधी-इरविन समझौते के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त कर दिया गया।
नमक सत्याग्रह (1930)
‘सत्याग्रह’ का अर्थ है, ‘सत्य की खोज और उसका आग्रह‘।
पृष्ठभूमि
19वीं सदी में अंग्रेजी सरकार ने भारत में नमक के व्यापार पर अपना पूर्ण एकाधिकार कर लिया था। जिसके कारण नमक का दाम बहुत अधिक हो गया, और आम जनता को काफी परेशानी हो रही थी। गांधीजी ने इस एकाधिकार को भारतीयों के ऊपर अत्याचार का एक रूप माना और इसका विरोध करने का निर्णय लिया।
12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी के लिए एक 241 मील लंबी यात्रा शुरू की। इस यात्रा में उनके साथ 78 अनुयायी थे। दांडी पहुंचने पर गांधीजी ने समुद्र के पानी से नमक बनाया और ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया। इस घटना ने पूरे भारत में एक हलचल पैदा कर दी और लाखों लोग गांधीजी के समर्थन में सड़कों पर उतर आए।
सत्याग्रह के प्रभाव
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ किया गया नमक सत्याग्रह एक ऐतिहासिक घटना थी। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ना और भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन-जागरूकता फैलाना था। गांधीजी के नमक सत्याग्रह ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक नई चेतना पैदा की। इस आंदोलन में भाग लेने वाले लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजा दिया गया, लेकिन उन्होंने अपना विरोध जारी रखा। नमक सत्याग्रह के कारण ब्रिटिश सरकार को भारत में अपने शासन को मजबूत करने में कठिनाई होने लगी।
सत्याग्रह के परिणाम
नमक सत्याग्रह के कई महत्वपूर्ण परिणाम हुए। इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन-जागरूकता को बढ़ाया और लोगों को स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक मजबूत राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में स्थापित किया। नमक सत्याग्रह के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार को भारत में अपने शासन को नरम करना पड़ा।
सत्याग्रह का महत्व
नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को एक नए स्तर पर ले जाया। नमक सत्याग्रह ने भारतीयों को यह दिखाया कि अहिंसक विरोध के माध्यम से भी बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
सत्याग्रह के प्रमुख नेता
- महात्मा गांधी,
- जवाहरलाल नेहरू,
- सरदार वल्लभभाई पटेल,
- सी. राजगोपालाचारी और
- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद।
सत्याग्रह के प्रमुख घटनाक्रम
- 12 मार्च, 1930 : गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी के लिए 241 मील लंबी यात्रा शुरू की।
- 6 अप्रैल, 1930 : गांधीजी दांडी पहुंचे और समुद्र के पानी से नमक बनाया।
- 7 अप्रैल, 1930 : गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 15 अप्रैल, 1930 : पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ।
- 5 मई, 1930 : धारासन में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सैकड़ों लोगों को घायल कर दिया गया।
- 12 मई, 1930 : गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया।
- 20 अप्रैल, 1930 : भारत सरकार ने नमक कानून में कुछ छूट दी।
- 5 मार्च 1931 : गांधीजी और ब्रिटिश सरकार के बीच समझौता हुआ।
नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को एक नए स्तर पर ले गया और अंततः भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
क्रिप्स मिशन की असफलता जे बाद भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 8 अगस्त, 1942 को वर्धा की बैठक में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया, जिसमें इसके उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अहिंसक जन आंदोलन प्रारंभ करने का प्रस्ताव था। इसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन के दौरान गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में ‘करो या मरो’ का आह्वान किया था। इसी आंदोलन के समय मेहर अली ने साइमन गो बैक का नारा भी दिया था।
9 अगस्त 1942 को प्रातः ही ऑपरेशन जीरो आवर के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी को पूना के आगा खाँ महल में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया।
गांधीजी ने इस आंदोलन को ‘अपने जीवन का अंतिम आंदोलन’ कहा था। इस आंदोलन के प्रारंभ होने के अगले ही दिन (9 अगस्त को) गांधीजी सहित सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का भूमिगत होकर संचालन जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया एवं श्रीमती अरुणा आसफ अली ने किया था।
इस आंदोलन में भारत के लगभग हर जाति-वर्ग का व्यक्ति शामिल था। इस आंदोलन ने युवाओं को भी अपनी ओर आकर्षित किया। आजादी के इस आंदोलन में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली आदि जैसे महान क्रांतिकारी शामिल थे।
इस आंदोलन को दबाने में अंग्रेज हालांकि सफल रहे, परंतु उन्होंने इस प्रकार के विकराल विद्रोह को संघर्ष की अपेक्षा समझौते से समाप्त करने का प्रयास किया। इस आंदोलन के कारण भारत में वामपंथी समूहों और पार्टियों का प्रभाव कमजोर हुआ। समाजवादियों तथा सुभाष चंद्र बोस के समर्थकों ने कम्युनिस्टों पर धोखेबाजी का आरोप लगाया।
भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) के दौरान गाँधी जी ने कहा था कि यह मेरे जीवन का अंतिम संघर्ष होगा और उन्होंने करो या मरो का नारा दिया।
गाँधी और गोलमेज सम्मेलन (1931)
महात्मा गाँधी ने एकमात्र द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांधी 27 अगस्त, 1931 को बंबई से इंग्लैंड गए थे। गांधीजी को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) से खाली हाथ लौटना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मुस्लिम एवं दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की बात मानने से इनकार कर दिया था।
गांधी-अम्बेडकर और पूना-पैक्ट (1932)
पूना पैक्ट, महात्मा गांधी और भीमराव आंबेडकर के बीच 24 सितम्बर 1932 को पुणे के यरवदा सेंट्रल जेल में हुआ था। इस समझौत के अंतर्गत दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन मंडल समाप्त कर दिया गया तथा दलित वर्गों को मजबूरी में संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र के सिद्धांत को स्वीकार करना पड़ा।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के परिणामस्वरूप 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनल्ड ने साम्प्रदायिक पंचाट (कम्युनल एवार्ड) की घोषणा की, जिसमें 11 समुदायों को शामिल करके दलितों के लिए एक पृथक निर्वाचन मंडल बनाया गया। जिसके अंतर्गत भीमराव आंबेडकर द्वारा उठाई गई राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार मिला। एक वोट से दलित अपने प्रतिनिधि चुनेंगे और दूसरे वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनेंगे। इस प्रकार, दलित प्रतिनिधि केवल दलितों की वोट से ही चुनी जाएगी। दुसरे शब्दों में, उम्मीदवार दलित वर्ग से होंगे और मतदाता भी सिर्फ दलित वर्ग के ही होंगे।
दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था का महात्मा गांधी ने विरोध किया। गांधी का मानना था कि पृथक निर्वाचक मंडल दलितों को हिंदू समाज से अलग कर देगा। गांधी उस समय पुने की यरवदा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होने पर, पहले उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे बदलने की कोशिश की, परंतु जब यह निर्णय बदला नहीं जा सका। इसलिए उन्होंने 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन (मरने तक अन्न ग्रहण नही करना) शुरू कर दिया।
24 सितम्बर 1932 को सायंकाल पांच बजे, कांग्रेस के सवर्ण नेताओं के दबाव में पुने की यरवदा जेल में गांधीजी और डॉ. आंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में डॉ. आंबेडकर को कम्युनल अवार्ड में मिले पृथक चुनावी अधिकारों को त्यागना पड़ा, और संयुक्त निर्वाचन (जैसा कि वर्तमान में है) की पद्धति को स्वीकार किया, लेकिन साथ ही कम्युनल अवार्ड से मिली 71 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या को बढ़ाकर 148 कर दिया गया।
साथ ही, अछूत लोगों के लिए प्रत्येक प्रांत में शिक्षा अनुदान में पर्याप्त धन निर्धारित किया गया और सरकारी नौकरियों में बिना किसी भेदभाव के दलित वर्ग की भर्ती को सुनिश्चित किया। इस समझौते पर हस्ताक्षर करके, बाबासाहब ने गांधीजी को जीवन दान दिया। आंबेडकर इस समझौते से असंतुष्ट थे, उन्होंने गांधीजी के द्वारा उनके राजनीतिक अधिकारों को सीमित करने और उन्हें उनकी मांगों से पीछे हटने के लिए बनाये गए दबाव को एक नाटक बाताया है।
महात्मा गांधी और वर्ण-व्यवस्था
गांधी वर्ण-व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि वर्ण-व्यवस्था समाज के लिए उपयोगी है, इससे श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण को बढ़ावा मिलता है।
जाति व्यवस्था पर महात्मा गांधी के विचार
गांधी ने 1921 में अपनी गुजराती पत्रिका ‘नवजीवन’ में लिखा, “मेरा विश्वास है कि यदि हिन्दू समाज अपने पैरों पर खड़ा हो पाया है तो वजह यह है कि इसकी बुनियाद जाति-व्यवस्था के ऊपर डाली गई। जाति का विनाश करने और पश्चिमी यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था को अपनाने का अर्थ होगा कि हिन्दू आनुवंशिक-पैतृक व्यवसाय के सिद्धान्त को त्याग दें, जो जाति-व्यवस्था की आत्मा है। आनुवंशिक सिद्धान्त एक शाश्वत सिद्धान्त है। इसको बदलने से अव्यवस्था पैदा होगी। मेरे लिए ब्राह्मण का क्या उपयोग है, यदि मैं उसे जीवन-भर ब्राह्मण न कह सकूँ । यदि हर रोज़ किसी ब्राह्मण को शूद्र में परिवर्तित कर दिया जाए और शूद्र को ब्राह्मण में, तो इससे अराजकता फैल जाएगी।”
जाति व्यवस्था पर डॉ. आंबेडकर के विचार
अंबेडकर वर्ण-व्यवस्था के कट्टर आलोचक थे। अंबेडकर के अनुसार, “जाति-व्यवस्था से बढ़कर अपमानजनक सामाजिक संगठन हो ही नहीं सकता। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो लोगों को शिथिल, पंगु और विकलांग बनाकर, उन्हें कुछ भी उपयोगी गतिविधि नहीं करने देती। वर्ण-व्यवस्था अवैज्ञानिक, अमानवीय, अलोकतांत्रिक, अनैतिक, अन्यायपूर्ण एवं शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था है।”
महात्मा गांधी की मृत्यु
महात्मा गांधी की मृत्यु कोई प्राकृतिक मृत्यु नहीं थी, बल्कि उनकी हत्या की गई थी। महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिरला भवन में प्रार्थना करने के लिए जाते समय एक 28 वर्षीय उग्र हिन्दूवादी युवा नाथूराम गोडसे द्वारा कर दी गई।
निष्कर्ष
महात्मा गाँधी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके विचार और कार्य हमें आज भी प्रेरित करते हैं। उन्होंने अहिंसा, सत्य और शांति के सिद्धांतों पर आधारित एक ऐसा आंदोलन चलाया जिसने भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उनके विचार और आदर्श आज भी दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
इस ब्लॉग पोस्ट में हमने महात्मा गाँधी के जीवन और उनके विचारों पर एक नज़र डाली। हमने उनके आंदोलन के बारे में भी जाना और उनकी विरासत पर चर्चा की।
आशा है, इस ब्लॉग पोस्ट से आपको महात्मा गाँधी के बारे में कुछ नया जानने और समझने में मदद मिली होगी। उनके विचार और आदर्श हमें आज भी मार्गदर्शन करते हैं और हमें एक बेहतर दुनिया बनाने की प्रेरणा देते हैं।
FAQs : Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay
Q 1. महात्मा गाँधी कौन थे?
महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। वे सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित असहयोग आंदोलन के नेता थे, जिसने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँधी को उनकी अहिंसक प्रतिरोध की रणनीति के लिए महात्मा या महान आत्मा नाम से जाना जाता है।
Q 2. गाँधी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।
Q 3. गाँधी ने किससे शादी की थी?
गाँधी ने 1883 में कस्तूरबा से शादी की।
Q 4. गाँधी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए क्या किया?
गाँधी ने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के तहत, भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विभिन्न प्रकार के विरोध प्रदर्शन किए, जिनमें हड़ताल, बहिष्कार और प्रदर्शन शामिल थे। गाँधी के नेतृत्व में, भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर निकालने के लिए एकजुट होकर लड़ाई लड़ी।
Q 5. गाँधी को किसके लिए जाना जाता है?
गाँधी को उनके अहिंसक प्रतिरोध की रणनीति के लिए जाना जाता है। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित एक नया राजनीतिक दर्शन विकसित किया, जिसने दुनिया भर में स्वतंत्रता और समानता के आंदोलनों को प्रेरित किया।
Q 6. गाँधी की मृत्यु कैसे हुई?
महात्मा गांधी की मृत्यु कोई प्राकृतिक मृत्यु नहीं थी, बल्कि उनकी हत्या की गई थी। महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिरला भवन में प्रार्थना करने के लिए जाते समय एक 28 वर्षीय उग्र हिन्दूवादी युवा नाथूराम गोडसे द्वारा कर दी गई।