स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Swami Vivekananda Biography in Hindi) – दोस्तों आज मैं बात करने जा रहा हूँ ऐसे महान व्यक्ति की जिन्होंने हिन्दू धर्म को दुनिया के कोने – कोने में फैलाया और पूरी दुनिया को हिंदुत्व की शक्ति से अवगत कराया। ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि भारत के स्वामी विवेकानंद जी हैं। जिनकी जीवन शैली को अपनाकर बहुत सारे लोगों ने अद्भुत ज्ञान प्राप्त किया, जैसे – महात्मा गाँधी, निकोला टेस्ला, नरेंद्र मोदी, सुभाष चंद्र बोस आदि।
स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है वे 700 पेज की एक पूरी किताब को मात्र 1 घंटे में कंठस्थ याद कर लेते थे। स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। तो आइये जानते हैं स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय विस्तार से।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
नाम | स्वामी विवेकानंद |
वास्तविक नाम | नरेन्द्रनाथ दत |
जन्म | 12 जनवरी 1863 |
जन्म स्थान | कोलकाता |
पिता | विश्वनाथ दत्त |
माता | भुवनेश्वरी देवी |
शिक्षा | कला से स्नातक की उपाधि |
स्कूल / कॉलेज | ईश्वर चंद्र विद्यासागर / प्रेसिडेंसी कॉलेज / जरनल असेम्ब्ली इन्स्टीटयूड |
निधन | 4 जुलाई 1902 |
जन्म और परिवार (Birth and Family)
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन कोलकाता के एक बहुत ही धार्मिक परिवार में हुवा था। स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
Swami Vivekananda के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद के पिता कोलकाता हाई कोर्ट में एक वकील थे और माता एक धार्मिक महिला थी। इसके अलावा इनके 9 भाई-बहिन थे।
स्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे। स्वामी विवेकानंद के दादा जी ने महज 25 वर्ष की उम्र में अपना परिवार छोड़ दिया था और सन्यासी बन गए थे।
नरेंद्र को बचपन से ही वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत, रामायण में बहुत रूचि थी। नरेंद्र अपनी माँ से धार्मिक कहानिया सुना करते थे। इसके अलावा वे बचपन में खेल-कूद में भी हमेशा आगे रहते थे।
शिक्षा और आध्यमिकता ( Swami Vivekananda Education )
स्वामी विवेकानन्द जी बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे। वे मोटी से मोटी किताबों को बस 1 घंटे में पूरा पढ़ लेते थे। स्वामी विवेकानंद के बचपन को लेकर एक प्रमुख किस्सा है, वह कुछ इस प्रकार है –
विवेकानन्द के घर के पास एक पुस्तकालय था, जहां से वो रोज किताबें पढ़ने के लिए ले जाते थे। ये हर दिन एक किताब ले जाते थे और दूसरे दिन उसे वापस कर दूसरी किताब लेते थे।
एक दिन पुस्तकालय के कर्मचारी ने नरेंद्र से पूछा तुम किताबे बस देखने के लिए ले जाते हो या पढ़ने के लिए, तो विवेकानंद ने कहा मैं पढ़ने के लिए ले जाता हूँ, आप इस किताब के किसी भी पृष्ठ से सवाल पूछ सकते है। कर्मचारी ने एक पृष्ठ के बारे में पूछा की इस पेज पर क्या लिखा है और नरेंद्र ने उस पेज पर लिखी सभी बातों को बता दिया। जिससे नरेंद्र की बुधि के बारे में पता चलता है।
विवेकानंद जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर से की। 1879 में नरेंद्र ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त किया, और ऐसा करने वाले वो एकमात्र विधार्थी थे।
इसके बाद नरेंद्र पश्चिमी इतिहास की शिक्षा प्राप्त करने के लिए जरनल असेम्ब्ली इन्स्टीटयूड में दाखिला लिया और 1881 मे ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में कला से स्नातक की डिग्री हासिल की।
जब नरेंद्र प्रेसिडेंसी कॉलेज में थे तब ये ब्रह्म समाज से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और ब्रह्म समाज को मानते थे। सन 1982 में नरेंद्र रामकृष्ण परमहंस के साथ तर्क करने के उद्देश्य से उनके पास गए। परतुं उनके विचारों से वे इतने प्रभावित हुए कि नरेंद्र परमहंस के शिष्य बन गए। नरेंद्र परमहंस के सबसे प्रिय शिष्य थे।
1884 में जब नरेन्द्रनाथ के पिता की मृत्यु हुई तो उनके परिवार पर दुखो का पहाड़ टुट पडा और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी. इसके बाद उन्होंने कफ़ी जगह नौकरी की तलाश की लेकिन उन्हें असफ़लता ही मिली. कुछ समय के बाद नरेंद्र संसार की मोह माया को छोड़कर भगवान को जानने और लोगों की सहायता के लिये अध्यात्म की खोज में लग गये.
16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की कैंसर से मृत्यु हो गयी जिसके बाद नरेन्द्रनाथ ने प्रतिज्ञा ली कि वे रामकृष्ण परमहंस की भांति अपना जीवन यापन करेंगे यही से नरेन्द्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा.
स्वामी विवेकानंद जी की यात्राएँ
25 वर्ष की उम्र में स्वामी विवेकानंद ने सन्यास ले लिया और विश्व भ्र्मण पर निकल गए. पहले उन्होंने सम्पूर्ण भारत की यात्रा की और लोगों में ज्ञान बांटा.
1893 को उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि बनकर गए. वहाँ पर विवेकानद जी का बहुत विरोध हुवा लेकिन उन्हें एक प्रोफ़ेसर की मदद से बोलने का अवसर मिला.
इसके बाद उन्होंने जो भाषण दिया उसे आज भी पूरा विश्व जानता है. उहोने जब बोलना शुरू किया तो लोगो को पता ही नहीं चला कि निर्धारित समय कब ख़त्म हो गया. उनका भाषण सबसे सफल भाषण था. उसके बाद से सारा अमेरिका भारतीय संस्कृति को जानने लगा था.
1994 में उन्होंने न्यू यॉर्क में वेदान्त सोसाइटी की स्थापना की. उन्होंने 4 वर्ष तक दुनिया के अलग – अलग देशों में सनातन धर्म का प्रचार – प्रसार किया. इंग्लैंड यात्रा के दौरान मर्ग्रेट एलिजाबेथ नाम की एक महिला उनकी शिष्या बनी वह विवेकानन्द जी की प्रमुख शिष्या में से एक थी, जो आगे चलकर सिस्टर निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुई.
इसके बाद 1897 में वे वापस भारत आ गए. इसी साल 1 मई 1897 को उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. इस दौरान उन्होंने भारत के अलग – अलग शहरो में भाषण दिये.
स्वामी विवेकानंद का निधन (Swami Vivekananda Death)
4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की अल्पायु मे स्वामी विवेकानन्द जी ने महासमाधि ले ली, और अपनी देह को त्यागकर इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गये. स्वामी विवेकानन्द जी के विचार आज भी लाखों युवाओ को जिंदगी में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं.
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FAQ: Swami Vivekananda Biography in Hindi
Q – स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कब हुवा था?
12 जनवरी 1863 को मकर सक्रान्ति के दिन.
Q – स्वामी विवेकानंद जी का वास्तविक नाम क्या था?
नरेन्द्र नाथ दत्त.
Q – स्वामी विवेकानंद ने किस उम्र में सन्यास ले लिया था?
25 वर्ष की उम्र में.
Q – रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब हुई थी?
1 मई 1897 को.
Q – स्वामी विवेकानंद जी का निधन कब हुआ?
4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में.
निष्कर्ष: स्वामी विवेकानंद की जीवनी
स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Swami Vivekananda Biography in Hindi) से हमें यह सीख मिलाती है कि जीवन लम्बा नहीं बड़ा होना चाहिए. उन्होंने इतने कम उम्र में वो सब कुछ प्राप्त किया जो उन्हें एक महान पुरुष बनाती है. अगर आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय पसंद आया तो कमेन्ट बॉक्स में जरुर अपनी प्रतिक्रिया दें. और इसे शेयर भी करें जिससे अधिक लोग स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रेरणा ले सकें.